मुर्गी का & #39; पखाना & #39;.. क्योंकि इंसानों के जाने लायक ये वैसे भी नहीं है। भला हो स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत मिलने वाले 12000/- का जिसके चलते आज मुर्गियों,बकरियों के सर पर छत है, लोगों के पास सामान रखने के लिए एक अतिरिक्त कक्ष है ,और क्यों ना हो जब ऐसे शौचालय बनेंगे तो उनका उपयोग
करना नामुमकिन है। मिशन के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में ,कुछ अपवाद, छोड़ कर बेहतरीन परिणाम देखने को मिले हैं किन्तु शहरों में यह मिशन सिर्फ काग़ज़ पर दिखता है जिसका नतीजा है कि आज हम सब & #39; ओपन डिफीकेशन फ्री & #39; हैं। अब सवाल ये है कि इन अधूरे पड़े, बेकार शौचालयों का उद्धार कैसे होगा
इन्हें कौन बनवाएगा? अगर लोग बनवा पाते तो पहले ही बना लेते! ऐसे सैकड़ों शौचालय तो मैंने खुद देखे है जो तेज़ आंधी में उड़ सकते है, आज भी सुचारु होने का इंतज़ार कर रहे।खैर !देखते हैं कब तक हम ये झूठा परचम लहराते हैं जबकि हममें से ही बहुत सी महिलाएं आज भी दिन ढलने का इंतज़ार करती हैं
Read on Twitter